क्या ढह रहा कांग्रेस का किला ?
पिछले 70 सालों से भ्रष्टाचार एवं घोटालों में लिप्त कांग्रेस जिस तेज गति से देश भर में जनाधार खोती जा रही है उससे लगता है भाजपा का कांग्रेस मुक्त भारत का नारा जल्द ही वास्तविकता बन जाएगी। अब कांग्रेस की दो राज्यों में ही सरकार सिमट कर रह गई है, जहां उसे बहुमत है। 2019 के लोकसभा चुनाव में भी कांग्रेस का जनाधार घटा और उसके बाद महाराष्ट्र, झारखंड, विधानसभा चुनाव में भी कांग्रेस मुख्य मुकाबले में नहीं आ पाई। महाराष्ट्र में कांग्रेस चौथे नंबर की पार्टी है।
कांग्रेस के दिग्गज नेताओं के एक के बाद एक पार्टी के पदों से इस्तीफा देने और पार्टी छोड़ने से अब यह साफ होता जा रहा है कि कांग्रेस पार्टी अपने सबसे मुश्किल दौर से गुजर रही हैं। लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने अपनी रणनीति बनाकर उस पर काम भी शुरू कर दिया है। वहीं कांग्रेस लोकसभा चुनाव तो छोड़िए, इसी साल साल के आखिर में होने वाले विधानसभा चुनावों में मजबूती से खड़ी होती नहीं दिख रही। हाल ही में जम्मू कश्मीर में पार्टी के वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आजाद ने चुनाव अभियान समिति की कमान संभालने से इनकार कर दिया था। इस झटके से कांग्रेस अभी उबरी भी नहीं थी कि हिमाचल प्रदेश में वरिष्ठ नेता आनंद शर्मा ने चुनाव संचालन समिति के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया। कांग्रेस पार्टी में इस्तीफे देने का सिलसिला जारी है।
गुलाम नबी आज़ाद लंबे समय से पार्टी से नाराज़ थे। उन्होंने जम्मू-कश्मीर में पार्टी के एक प्रमुख पद से इस्तीफा दे दिया है, जो अंदरूनी विद्रोह का एक संकेत है। पार्टी ने उन्हों प्रचार समिति का अध्यक्ष बनाया था लेकिन नियुक्ति के कुछ ही देर बाद उन्होंने पद से इस्तीफा दे दिया। इतना ही नहीं, उन्होंने पार्टी की जम्मू-कश्मीर राजनीतिक मामलों की समिति से भी इस्तीफा दे दिया है। गुलाम नबी आज़ाद कांग्रेस के एक अनुभवी नेता हैं और जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री के अलावा वो केन्द्र में मंत्री भी रहे हैं और पार्टी में भी कई महत्वपूर्ण पदों पर काम किया है। उन्हें सोनिया गांधी का राजनीतिक सलाहकार भी माना जाता है। आज़ाद उन 23 नेताओं के समूह में से एक हैं, जिन्होंने पार्टी प्रमुख सोनिया गांधी को दो साल पहले एक विस्फोटक चिट्ठी लिखी थी, जिसमें संगठनात्मक परिवर्तन की मांग की गई थी।
इस साल की शुरुआत से लेकर इन पांच महीनों के भीतर कांग्रेस से इस्तीफा देने वाले नेताओं में सबसे बड़ा नाम पूर्व केंद्रीय मंत्री कपिल सिब्बल का है। बीते काफी समय से उनके रिश्ते कांग्रेस आलाकमान के साथ अच्छे नहीं चल रहे थे। कपिल सिब्बल ने उदयपुर में कांग्रेस के चिंतिन शिवर में बैठक के बाद कांग्रेस नेतृत्व पर सवाल उठाए थे। सिब्बल कांग्रेस पार्टी में व्यापक सुधारों पर जोर देने वाले विद्रोही ग्रुप “जी -23” के एक प्रमुख सदस्य थे।
अब इसी क्रम में जयवीर शेरगिल ने कांग्रेस पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता के पद से त्यागपत्र दे दिया है। जयवीर शेरगिल ने अपने इस्तीफे को लेकर कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी को पत्र लिखा है। इसमें उन्होंने लिखा है कि, ‘मुझे यह कहते हुए दुख होता है कि फैसला लेना अब जनता और देश के हितों के लिए नहीं है, बल्कि यह उन लोगों के स्वार्थी हितों से प्रभावित है जो चाटुकारिता में लिप्त हैं और लगातार जमीनी हकीकत को नज़रअंदाज़ कर रहे हैं। जयवीर शेरगिल ने कहा, मैंने इस्तीफा दो कारणों से दिया है। आज कांग्रेस पार्टी के निर्णय जनहित में नहीं कुछ लोगों के हित में निर्णय लिए जा रहे हैं। वास्तविकता से मुंह मोड़ा जा रहा है, जनता के मुद्दों से मुंह मोड़ा जा रहा है। कांग्रेस के जो निर्णय लिए जाते हैं उसमें आपकी काबिलियत, जनता की आवाज़, युवाओं की अपेक्षाओं को नजरअंदाज करके सिर्फ कुछ लोग जो चुनाव भी हार चुके हैं, केवल उनकी ताजपोशी हो रही है। शेरगिल ने कहा, मैं राहुल गांधी, सोनिया गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा से एक साल से अधिक समय से समय मांग रहा हूं, लेकिन उनके दफ्तर में हमारा वेलकम नहीं है।
ताजा मामले में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता आनंद शर्मा ने हिमाचल प्रदेश चुनाव के लिए गठित संचालन समिति से इस्तीफा दे दिया है। आनंद शर्मा ने इस बारे में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को पत्र लिखा है। पत्र में आनंद शर्मा ने लिखा कि 26 अप्रैल को हिमाचल कांग्रेस के स्टीयरिंग कमिटी का प्रमुख बनाने के बावजूद आज तक उनकी भूमिका स्पष्ट नहीं की गई। उन्होंने लिखा कि बीते दिनों दिल्ली और शिमला में हिमाचल चुनाव को लेकर हुई महत्वपूर्ण बैठकों में भी उन्हें आमंत्रित नहीं किया गया। इसे ‘अपमान’ की बात कहत हुए कांग्रेस के वरिष्ठ नेता आनंद शर्मा ने हिमाचल प्रदेश में अहम पद से इस्तीफा दे दिया है। यह इस्तीफा पार्टी के लिए बड़ा झटका साबित हो सकता है।