प्रधानमंत्री मोदी भारत-चीन सीमा पर स्थित आखिरी गांव माणा में एक सभा को संबोधित किया। मोदी ने केदारनाथ और हेमकुंड साहिब के लिए रोपवे प्रोजेक्ट और बद्रीनाथ के विकास के लिए एक मेगा प्रोजेक्ट की आधारशिला रखी, जिसकी लागत 3,400 करोड़ रुपये से भी अधिक है। साथ ही बद्रीनाथ के प्रसिद्ध मंदिर में सैकड़ों भक्तों के सामने 'जय बद्री विशाल' का जयकारा भी लगाया। दोनों मंदिरों में पूजा-अर्चना करने के बाद प्रधानमंत्री ने कहा कि कैसे बीते 7 दशकों के दौरान पिछली सरकारों ने भारत के सदियों पुराने गौरवशाली विरासत की अनदेखी और उपेक्षा की।

मोदी ने कहा आज बाबा केदार और बद्री विशाल जी के दर्शन करके, उनके आशीर्वाद प्राप्त करके जीवन धन्य हो गया, मन प्रसन्न हो गया, और ये पल मेरे लिए चिरंजीव हो गए। माणा गांव, भारत के अंतिम गांव के रूप में जाना जाता है। लेकिन जैसे हमारे मुख्यमंत्री जी ने इच्छा प्रकट की अब तो मेरे लिए भी सीमा पर बसा हर गांव देश का पहला गांव ही है। सीमा पर बसे आप जैसे सभी मेरे साथी देश के सशक्त प्रहरी हैं।

उन्होने कहा कि किस तरह पिछली सरकारों ने 'गुलामी की मानसिकता' के कारण भारत के ऐतिहासिक मंदिरों की अनदेखी की। प्रधानमंत्री ने कहा, ‘देश की आजादी के 75 साल पूरे होने पर मैंने लाल किले से एक आह्वान किया है। ये आह्वान है, गुलामी की मानसिकता से पूरी तरह मुक्ति का। आजादी के इतने वर्षों के बाद, आखिरकार मुझे ये क्यों कहना पड़ा? क्या जरूरत पड़ी यह कहने की? ऐसा इसलिए, क्योंकि हमारे देश को गुलामी की मानसिकता ने ऐसा जकड़ा हुआ है कि प्रगति का हर कार्य कुछ लोगों को अपराध की तरह लगता है। यहां तो गुलामी के तराजू से प्रगति के काम को तोला जाता है। इसलिए लंबे समय तक हमारे यहां, अपने आस्था स्थलों के विकास को लेकर एक नफरत का भाव रहा। विदेशों में वहां की संस्कृति से जुड़े स्थानों की ये लोग तारीफ करते-करते नहीं थकते, लेकिन भारत में इस प्रकार के काम को हेय दृष्टि से देखा जाता था। इसकी वजह एक ही थी- अपनी संस्कृति को लेकर हीन भावना, अपने आस्था स्थलों पर अविश्वास, अपनी विरासत से विद्वेष। 

मोदी ने कहा, सैकड़ों वर्षों से मौसम की मार सहते आ रहे पत्थर, मंदिर स्थल, पूजा स्थल के जाने के मार्ग, वहां पर पानी की व्यवस्था हो तो उसकी तबाही, सब कुछ तबाह होकर के रख दिया गया था। आप याद करिए साथियों, दशकों तक हमारे आध्यात्मिक केंद्रों की स्थिति ऐसी रही वहां की यात्रा जीवन की सबसे कठिन यात्रा बन जाती थी। जिसके प्रति कोटि-कोटि लोगों की श्रद्धा हो, हजारों साल से श्रद्धा हो, जीवन का एक सपना हो कि उस धाम में जाकर के मत्था टेककर आएंगे, लेकिन सरकारें ऐसी रहीं कि अपने ही नागरिकों को वहां तक जाने की सुविधा देना उनको जरूरी नहीं लगा। पता नहीं कौन से गुलामी की मानसिकता ने उनको जकड़कर रखा था। 

प्रधानमंत्री ने कहा, इस उपेक्षा में लाखों-करोड़ों जनभावनाओं के अपमान का भाव छिपा था। इसके पीछे पिछली सरकारों का निहित स्वार्थ था। लेकिन भाइयों और बहनों, ये लोग हजारों वर्ष पुरानी हमारी संस्कृति की शक्ति को समझ नहीं पाए। वो ये भूल गए कि आस्था के ये केंद्र सिर्फ एक ढांचा नहीं बल्कि हमारे लिए ये प्राणशक्ति है, प्राणवायु की तरह हैं। वो हमारे लिए ऐसे शक्तिपुंज हैं, जो कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी हमें जीवंत बनाए रखते हैं। उनकी घोर उपेक्षा के बावजूद ना तो हमारे आध्यात्मिक केंद्रों का महत्व कम हुआ, ना ही उन्हें लेकर हमारे समर्पण भाव में कोई कमी आई। और आज देखिए, काशी, उज्जैन, अयोध्या अनगिनत ऐसे श्रद्धा के केंद्र अपने गौरव को पुन: प्राप्त कर रहे हैं। केदारनाथ, बद्रीनाथ, हेमकुंड साहेब को भी श्रद्धा को संभालते हुए आधुनिकता के साथ सुविधाओं से जोड़ा जा रहा है। अयोध्या में इतना भव्य राममंदिर बन रहा है। गुजरात के पावागढ़ में मां कालिका के मंदिर से लेकर देवी विंध्यांचल के कॉरिडोर तक, भारत अपने सांस्कृतिक उत्थान का आह्वान कर रहा है। आस्था के इन केंद्रों तक पहुंचना अब हर श्रद्धालु के लिए सुगम और सरल हो रहा है।

आपको बता दूं कि प्रधानमंत्री बनने के बाद मोदी करीब-करीब हर साल केदारनाथ गए। 2013 में गुजरात के सीएम के तौर पर केदारनाथ की त्रासदी के बाद वह वहां गए और उन्होंने केदारनाथ धाम के पुनर्निमाण का संकल्प लिया, और अब वह संकल्प पूरा हो चुका है। मोदी ने केदारनाथ की पूरी तस्वीर बदल दी।

मोदी केदारनाथ में हो रहे कामों पर खुद नजर रखते हैं। मोदी ने खुद ही ये बात बताई थी कि केदारनाथा में चल रहे काम की प्रगति पर ड्रोन के जरिए नजर रखते हैं। शुक्रवार को भी मोदी ने केदारनाथ में इंजीनियरों और कर्मचारियों से मुलाकात की। पिछले साल मोदी ने केदारनाथ में आदि गुरु शंकराचार्य के समाधि स्थल पर उनकी 12 फीट ऊंची प्रतिमा का अनावरण किया था।